आपको हिंदू राष्ट्र चाहिए या धर्म निरपेक्ष राष्ट्र?

-मोहित भारद्वाज-
नागरिकता बिल और एनआरसी का पूरे देश में विरोध तेज होता जा रहा है। दिल्ली के जामिया नगर से उठी विरोध की चिंगारी पूरे देश मेें फैलती जा रही है और देश दो विचारधाराओं के बीच बंटता हुआ नजर आ रहा है। घटते जा रहे रोजगार, शिक्षा प्रणाली तथा बदहाल अर्थव्यवस्था पर जोर देने की बजाय केन्द्र सरकार अपने एजेंडे को लागू करने के प्रति पूरी तरह से गंभीर नजर आ रही है, भले ही देश में उनकी नीतियों के विरोध में बड़े पैमाने पर विरोध ही क्यों न हो रहा हो। देश में बहस छिड़ गई है कि क्या मोदी सरकार भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की तरफ ले जा रही है। भाजपा के दूसरे कार्यकाल में जिस प्रकार से गृह मंत्री अमित शाह फैसले ले रहे हैं, उससे देश के अल्पसंख्यक समुदाय में एक तरह का डर पैदा हो गया है। सरकार और गृह मंत्री दावा कर रहे हैं कि समान नागरिकता बिल से किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा, लेकिन यह बिल असल में एनआरसी को लागू करने के लिए एक तरह से हथियार होगा, जिसे गैर हिंदुओं के हितों पर सीधे-सीधे तौर पर देखा जा रहा है। सरकार कह रही है कि 1947 में देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था, जो कि नहीं होना चाहिए था। उस वक्त अंग्रेजों की फूट डालो राज करो की नीति के कारण देश में सापं्रदायिक दंगे भड़के थे। उस अध्याय को काले अध्याय के तौर पर सभी भूल जाना चाहते है, मगर केन्द्र सरकार अब क्या कर रही है?  नागरिकता बिल और एनआरसी के नाम पर देश को मुस्लिम बनाम गैर मुस्लिम के तौर पर बांटने के सिवाय क्या है?  अब सवाल उठ रहा है कि क्यों आखिरकार इतने विरोध के बावजूद केन्द्र सरकार इसे लागू करना चाहती है? देश के बड़े-बड़े बुद्धिजीवियों, लेखकों का मानना है कि मोदी सरकार-2 संघ के उस एजेंडे पर काम कर रही है, जिसका सपना रहा है कि भारत हिंदू राष्ट्र बने। जिस वक्त देश का बंटवारा हुआ उस समय पाकिस्तान ने अपने आपको मुस्लिम राष्ट्र घोषित किया, जिसके दुष्परिणाम सामने आए और पाकिस्तान में आज भी लोकतंत्र स्थापित नहीं हो पाया। पाकिस्तान में आज भी धार्मिक नेता किसी भी प्रधानमंत्री से ज्यादा पावरफुल हैं जो अपने सनकी फैसले थोपने पर आ जाएं तो अपने मंशूबों को कामयाब करने के लिए किसी भी हद तक जाते हैं। आजादी के बाद जहां पाकिस्तान ने धार्मिक कट्टरवादी देश के रूप में अपनी पहचान बनाई और विकास व रोजगार की बजाय आज भी वहां धार्मिकता से जुड़े मुद्दे ही हावी हैं। मुस्लिम राष्ट्र होने के कारण वहां गैर मुस्लिमों पर अत्याचार हुए, वहीं दूसरी ओर भारत ने धर्म निरपेक्ष का रास्ता चुना, जिसमें सभी धर्मों के लोगों को संविधान में समान अधिकार मिले हैं। कोई भी व्यक्ति भारत में धर्म, जाति के आधार पर संविधान में छोटा या बढ़ा नहीं है। यह हमारी धर्म निरपेक्षता की खूबी ही थी जिसे भारत को दुनिया में पहचान मिली और देश विकास की गति से आगे बढ़ा। भाजपा शासित केन्द्र सरकार को जब से 300 पार सीटें मिली हैं, तभी से आरएसएस को अपने वर्षों पुराने उसी एजेंडे को स्थापित करने का सुनहरी अवसर लग रहा है जिस एजेंडे को लेकर उसका गठन 1925 में हुआ था। अगर वह अपने प्लान में कामयाब हो गया और भारत अपनी धर्मनिरपेक्षता की अंतर्राष्ट्रीय छवि को खो बैठा तो पिछले 50 सालों में हमने जो अचीव किया है, उसे नष्ट होने में ज्यादा दिन नहीं लगेंगे, क्योंकि धार्मिक कट्टरता चाहे वह किसी भी धर्म में हो या फिर जाति में हो वहां का समाज विकास के रास्ते में कभी आगे नहीं बढ़ पाता। अब देश की जनता का तय करना है कि उसे धर्म निरपेक्ष देश चाहिए या फिर हिंदू राष्ट्र?  और अगर धर्म निरपेक्ष देश चाहिए तो सत्तासीन सरकार के ऐसे काले प्रावधानों का विरोध कीजिए जो हमें धर्म, जाति के नाम पर बांटने को उतारू है और अगर आपको हिंदू राष्ट्र ही चाहिए तो मोदी सरकार का गुणगान कीजिए। 

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