आर्थिक बर्बादी की ओर बढ़ रहा भारत

देश का रेलवे अपने इतिहास के सबसे बड़े घाटे में है, बेरोजगारी अपने चरम पर है, बैंक दिवालिया हो रहे हैं, रूपया कोमा में है, जीडीपी न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है, लाखों लोग बेरोजगार हो गए हैं, क्राइम दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। इन सबके बावजूद प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह कह रहे हैं कि देश आगे बढ़ रहा है, विकास की रफ्तार तेज है। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री या तो किसी खुशफहमी में जी रहे हैं या फिर अपने चाटुकारों की टीम के बोझ तले इतना दब गए हैं कि उन्हें कुछ भी साफ-साफ दिख नहीं रहा है या फिर वे देखना नहीं चाहते। हम सब देशवासी भी यही अंदाजा लगा रहे हैं कि यह मंदी अस्थायी है और मोदी सरकार सब कुछ संभालते हुए देश को विकास की पटरी पर ले जाएंगी, लेकिन पिछले सालों में भाजपा की कार्यप्रणाली से देश निरंतर खाई की तरफ जा रहा है और अगर केन्द्र सरकार जल्द नहीं संभली तो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भीषण आर्थिक बदहाली में डूब जाएगा। देश में आर्थिक इमरजेंसी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश के बैंक भीषण घाटे में हैं, क्योंकि सरकार की शह पर कुछ बड़े पंूजीपति करोंड़ों, अरबों रूपया डकार गए हैं और वापिस लौटाने की बजाय विदेश भाग गए हैं। जीएसटी, नोटबंदी जैसे बेतुके फैसलों ने देश के छोटे-बड़े उद्योग धंधों को बर्बाद कर दिया है। पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस के दामों में निरंतर इजाफा हो रहा है। प्याज के दाम 100 से ऊपर तो जैसे स्थायी हो गई हैं। बेतहाशा बढ़ती महंगाई और घटते रोजगार ने लोगों का जीना दुश्वार कर दिया है, लेकिन नहीं इन सबके बावजूद पीएम और गृह मंत्री के अनुसार देश में सब ठीक है। बिकाऊ मीडिया देश के वर्तमान वास्तविक हालातों को जनता के सामने रखने की बजाय भाजपा के पीआर में लगा हुआ है और ऐसे दिखाया जा रहा है मानो कुछ भी गलत नहीं हो रहा है। प्रधानमंत्री अपने ही छवि के बोझ तले दबते जा रहे हैं और देश भीषण आर्थिक संकट से जूझ रहा है। भाजपा को सिर्फ चुनावी जीत दिख रही है कि लोग उनके कामकाज से खुश हैं, लेकिन यह नहीं दिख रहा कि कांग्रेस के रूप में कमजोर विकल्प को देखते हुए देश की जनता ने उनको एक और मौका दिया है। देश की प्रमुख समस्याओं को दरकिनार करके छद्म राष्ट्रवाद की लहर देश में चलाई जा रही है, जिससे प्रभावित होकर देश के भ्रमित युवा वर्ग ने भाजपा को सत्ता में ला दिया, लेकिन जिस प्रकार से एनडीए की कार्यप्रणाली रही है, उससे आने वाले समय में और ज्यादा संकट देश के सामने आने तय हैं। चंद पूंजीपति भले ही बैंकों को अरबों रूपया लेकर भाग गए हों, लेकिन देश की जनता से टैक्सों में वृद्धि करके, बिजली के दामों को बढ़ाकर, इंटरनेट, फोन सहित तमाम आम आदमी के उपभोग की वस्तुओं में इजाफा करके वसूला जा रहा है। टेलीकाम कंपनियों को ही देख लो 50 प्रतिशत तक की वृद्धि की खुली छूट दे दी गई है। 

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