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Showing posts from November, 2019

क्या प्याज से अब आंसू निकलना बंद हो गए?

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किसी समय हमारे देश में प्याज की बढ़ी कीमतों के कारण सरकार तक गिरा दी थी, लेकिन पूरे देश में पिछले छह माह से भी अधिक समय से प्याज की कीमतों में आग लगी हुई है, लेकिन न तो सरकार के कानों पर जूं रेंग रही है और न ही विपक्ष के लिए भी अब बढ़ती प्याज की कीमतें कोई मुद्दा रह गई हैं। रोजमर्रा की भागदौड़ में व्यस्त आम जनमानस ने भी शायद अब बढ़ती कीमतों के साथ समझौता सा कर लिया है। भले ही प्याज की कीमतें पेट्रोल के दामों से भी ऊपर निकल गई हों। सरकार, विपक्ष और आम लोगों के इस रवैए से लग रहा है की प्याज से अब लोगों के आंसू निकलना बंद हो गए हैं। हो सकता है चाइना से कोई ऐसा बीज आ गया हो, जिससे प्याज ने आंसू निकालना बंद कर दिया हो। आज देश की राजधानी से लेकर विभिन्न राज्यों में प्याज की कीमतें आसमान छू रही हैं। थोक मंडियों में जहां प्याज 50 से 60 रूपए प्रति किलों, वहीं खुदरा बाजार में ब्याज 90 से 100 रूपए प्रति किलों के हिसाब से बिक रहा है। प्याज की बढ़ती कीमतों पर लगाम कसने, मांग को पूरा करने की दिशा में ठोस कदम उठाने की बजाय केन्द्र सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी नजर आ रही है। बेशर्मी की हद देखिए की फूड

समय का पहिया घूम रहा है।

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2014 के लोकसभा चुनाव के बाद जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया और उसके बाद कई प्रदेशों में कांग्रेस से सत्ता भी छीनी तो उसके बाद तो जैसे भाजपा के हर छोटे-बड़े नेता ने दंभ में आकर कांग्रेस मुक्त भारत का नारा लगाना शुरू कर दिया। 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद फिर से भाजपा के इस नारे को बल मिला और 300 पार बहुमत पाकर नरेन्द्र मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बने और कांग्रेस के कमजोर नेतृत्व ढुलमुल राजनीतिक रवैए से लोगों को ऐसे लगने लगा की भाजपा तेजी से कांग्रेस मुक्त भारत के सपने की तरफ बढ़़ रही है। 2014 से लेकर 2017 तक भाजपा ने देश के ज्यादातर राज्यों में भाजपा या भाजपा गठबंधन सरकारें बनाने में सफलता पाई और देश के 70 प्रतिशत क्षेत्रफल में भाजपा ही नजर आने लगी थी। मध्यप्रदेश, राजस्थान, यूपी, महाराष्ट्र से लेकर हर छोटे-बड़े राज्य में भाजपा का ग्राफ तेजी से बढ़ता जा रहा था और कांग्रेस गठबंधन सरकारें धाराशाही होती जा रही थी। सत्ता के मद में चूर भाजपा नेताओं के भाषणों से अहंकार झलकने लगा था, लेकिन वर्तमान में अगर गत दिवस महाराष्ट्र से भी भाजपा के सत्ता गंवाने के बाद अ

कौन सा लोकतंत्र और कैसी मर्यादा?

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हमाम में सब नंगे हैं यहां, मौका मिलने पर दाग अच्छे हैं यहां दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का दम भरने वाले हम भारतीय पिछले एक माह से महाराष्ट्र के महा सियासी ड्रामे के गवाह बन रहे हैं। इस पूरे प्रकरण को हमारे लोकतंत्र की खासियत कहें या कमजोरी। बहुमत, अल्पत, पक्ष-विपक्ष के आरोप-प्रत्यारोपों के बीच सुप्रीम कोर्ट के आज आए फैसले के बाद फडऩवीस को 27 नवंबर सांय तक फ्लोर टैस्ट साबित करना होगा। उम्मीद के विपरित जिस प्रकार से देवेन्द्र फडऩवीस ने एनसीपी नेता अजित पवार के साथ मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री की शपथ ली तो उसके बाद पूरे देश में महाराष्ट्र की राजनीति की चर्चा चल पड़ी की भाजपा ने एक बार फिर कांग्रेस समेत तमाम विपक्ष राजनीतिक मात दी, लेकिन शरद पवार, उद्धव ठाकरे ने गत दिवस होटल में 162 विधायकों का साथ होने का दावा किया और विधायकों की शपथ की बात भी कही। शरद पवार, उद्धव ठाकरे का यह दावा कितना सही है यह तो 27 नवंबर को सांय 5 बजे ही पता चल पाएगा, लेकिन राजनीति में हर मिनट महत्वपूर्ण होता है। हमने कई बार परिस्थितियों को बदलते हुए, विधायकों की आस्था बदलते हुए, तमाम उम्मीदों के विपरित सरकारों को

अयोध्या फैसले की आड़ में अपना एजेंडा सेट करता एक राजनीतिक दल!

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अयोध्या फैसले की आड़ में अपना एजेंडा सेट करता एक राजनीतिक दल! रामजन्म भूमि को लेकर पिछली कई सदियों से जारी विवाद जब पिछले पखवाड़े सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया तो सभी ने इसका स्वागत किया। करना भी चाहिए क्योंकि हमारे देश में सुप्रीम कोर्ट से ऊपर कुछ भी नहीं और न्यायालय के फैसलों का हमें सम्मान करना चाहिए। भले ही अयोध्या विवाद धर्म से जुड़ा हुआ था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जिस सुझबुझ से विवाद की लगातार सुनवाई करके इस मामले में फैसला दिया, उसकी चहुंओर प्रशंसा हो रही है और विभिन्न मुस्लिम संगठनों ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सही माना है। देश की जनता पहले ही इस मामले में मूड बना चुकी थी की सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सभी पक्षों की पैरवी सुनते हुए तर्कसंगत फैसला ही सुनाएगा। देश अदालतें और देश की जनता तो अपनी जिम्मेवारियां भली भांति निभा रही हैं, लेकिन राजनीति से जुड़े कुछ लोगों के पेट में दर्द शुरू हो जाता है, जब उनकी राजनीतिक रोटियां सेंकने का एक अहम मुद्दा उनके हाथ से चला गया और देशभर में शांति भी रही। देश में कट्टरता की विचारधारा से ओतप्रोत सत्तासीन पार्टी के नेताओं को अयोध्या मामले में

क्या वापसी कर पाएंगे शाहरूख?

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क्या वापसी कर पाएंगे शाहरूख? बॉक्स ऑफिस पर जब से शाहरूख खान की पिछली फिल्म जीरो असफल साबित हुई, तब से लेकर अब तक काफी लंबा समय बीत चुका है, लेकिन अभी तक उन्होंने नई फिल्म साईन नहीं की है, जिससे उनके फैन में इस बात की उत्सुकता एवं बेचैनी है की किंग खान आखिरकार क्यों जीरो के असफल होने को दिल पर लगा बैठे हैं। किसी समय बॉक्स ऑफिस के शहंशाह रहे शाहरूख खान की पिछली करीब आधा दर्जन फिल्मों में उतना अच्छा प्रदर्शन नहीं किया, जिसके लिए वे जाने जाते हैं। जीरो के असफल होने के बाद शाहरूख ने थोड़ा बे्रक लिया है और उन्होंने आत्ममंथन भी किया है कि आखिर उनसे गलती कहां हो रही है। निश्चित तौर पर यह बात तो साफ है कि उनकी एक्टिंग स्किल पर किसी को कोई भी शक नहीं है और आज भी वे ऐसे हीरों है, जिनकी फिल्मों की लोग बेचेनी से इतंजार करते हैं। उनके फैंस में इस बात को लेकर टीस साफ नजर आ रही है कि आखिरकार वो नई फिल्म क्यों नहीं साईन कर रहे हैं। फिल्मों को सफल या असफल होना सिर्फ एक कलाकार के हाथ में नहीं होता है। बेशक पिछले कुछ समय से उनकी फिल्मों ब्लॉक बस्टर साबित न हुई हों, लेकिन उन्होंने प्रयोग भी तो बहुत कि

न्यूजपेपर में लिखा है उद्धव सीएम बनेंगे , टीवी में आ रहा है फडनवीस सीएम बन चुके हैं।

कहतें है राजनीति में स्थितियां पल-पल बदलती रहती हैं और यह बात एक बार फिर सही साबित दिखी जब आज सुबह टीवी में अचानक से खबरें आनी शुरू हो गई की देवेन्द्र फडनवीस महाराष्ट्र के सीएम बन चुके हैं और उन्होंने शपथ भी ले ली ही है। आज के सभी प्रमुख अखबारों में मुख्य हैडलाईन है की महाराष्ट्र में अगली सरकार शिवसेना, एनसीपी व कांग्रेस गठबंधन की बनने जा रही है और उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के सीएम बनेंगे। पिछले एक पखवाड़े से भी ज्यादा समय महाराष्ट्र में जारी राजनीतिक उठापठक के बीच कल कयास लगाए जा रहे थे कि उद्धव ठाकरे के नाम पर कांग्रेस व एनसीपी में सहमती बन गई और वे शिवसेना के पहले सीएम बनने जा रहे हैं, लेकिन हमेशा की तरह एक बार फिर भाजपा ने चौंकाते हुए पासा पलट दिया और देवेन्द्र फडनवीस को सीएम पद की शपथ दिला दी। हालांकि दावा तो ये भी किया जा रहा है कि उनके पास बहुमत नहीं है और एनसीपी के सभी विधायक उनके समर्थन में नहीं है, लेकिन यह तो आने वाला समय ही बता पाएगा की क्या देवेन्द्र फडनवीस बहुमत साबित करने में सफल हो पाते हैं या नहीं, लेकिन उन्होंने दोबारा से सीएम पद की शपथ लेकर शिवसेना के उन सभी मंसूबों पर

एक और जहर प्लास्टिक

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एक और जहर प्लास्टिक मोहित भारद्वाज बेइंतहा बढ़ते जा रहे वायू प्रदूषण और मिलावट के महाजाल से जहां हवा और हमारे खाने में जहर बुरी तरह से घुल चुका है, वहीं मानव जीवन के लिए तीसरा सबसे बड़ा जहर बनकर उभरा है प्लास्टिक। पूरी दुनिया में प्लास्टिक के बेजां इस्तेमाल से यह हमारे पर्यावरण के लिए बहुत बड़ी मुसीबत बनकर उभरा है, क्योंकि प्लास्टिक ऐसी वस्तु है जो कभी खत्म नहीं हो सकती। लाखों, करोड़ों टन प्लास्टिक कचरा हर दिन इकठ्ठा हो रहा है और हम धड़ल्ले से इस जहर को इस्तेमाल करते जा रहे हैं। पर्यावरण प्रदूषण में ही अगर प्लास्टिक की बात की जाए तो अकेले दिल्ली में मात्र गाडिय़ों के टायर से 1 लाख किलोग्राम रबड़ प्रतिदिन हवा में घुल जाता है, वहीं पूरी दुनिया में हर एक सेकेंड में आठ टन प्लास्टिक का सामान बनता है और हर वर्ष 50 लाख टन प्लास्टिक कचरा समुद्रों में पहुंच जाता है। पानी की बोतलें, खिलौने, कोल्ड ड्रिंक्स, प्लास्टिक पैक में बंद फास्ट फूड सहित अनेक खाद्य पदार्थ दैनिक उपभोग की वस्तुओं में शामिल हैं, जो प्लास्टिक की बोतलों या बैगों में पैक किए जाते हैं। इन प्लास्टिक पैक्ड फूड के उपयोग से धीरे

मेरे देश में हवा भी जहरीली और खाना भी

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देश में हवा भी जहरीली और खाना भी दिल्ली, एनसीआर में वायू प्रदूषण के बढ़ते स्तर पर जब मैं लिख रहा था तो मेरे जहन में यह बात भी आई की हमारे देश में सिर्फ हवा में ही जहर तेजी से नहीं फैल रहा, बल्कि खाद्य पदार्थों में बढ़ती जा रही मिलावट से भी देशवासी जहर खाने को मजबूर हैं। अब हवा भी जहरीली और खाना भी जहरीला। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई जैसे बड़े शहरों से लेकर देश के हर छोटे-मोटे शहर में खाद्य पदार्थों में की जा रही मिलावट का गौरखधंधा धड़ल्ले से जारी है। जिस पर न तो सरकारी अधिकारी ही लगाम कस पा रहे हंै और न ही सरकार ही इस दिशा में गंभीर नजर आती है। दालें, दूध, अनाज, मसाले, घी, सब्जी, फल से लेकर हर वह खाद्य पदार्थ आज मिलावट से अछूता नहीं है, जो कि हमारी दैनिक दिनचर्या में शामिल है। रोमर्रा की जरूरतों में उपयोग होने वाली वस्तुओं में मिलावट की वजह से हमारे शरीर पर इसका कुप्रभाव पड़ रहा है और हम जीवन की आपाधापी की व्यस्तता में इतने व्यस्त होते जा रहे हैं कि हमें यह ज्ञान ही नहीं है कि हम या हमारे बच्चे जो खा रहे हैं वह पूरी तरह से स्वच्छ, मिलावट रहित है भी या नहीं। खाद्य पदार्थों में

हवाएं हाल-बेहाल

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हवाएं हाल-बेहाल पानी के बाद अब ऑक्सीजन भी खरीदनी पड़ेगी  पूरे देश में पर्यावरण प्रदूषण को लेकर हो-हल्ला मच रहा है। देश की राजधानी नई दिल्ली में हवा में सांस लेना भी दुश्वार हो गया है। हर बार की तरह चारों ओर किसानों को इस जहरीली हवा के लिए दोषी ठहराया जा रहा है कि पंजाब एवं हरियाणा के किसान पराली जलाते हैं, जिसका जहरीला धुआं हवा में घुलकर दिल्ली पहुंच रहा है। एक नजर से देखा जाए जाए इन दावों में दम भी नजर आता है, क्योंकि सरकारों द्वारा बार-बार चेतावनी देने के बावजूद भी बड़ी संख्या में किसान पराली जला रहे हैं, लेकिन दिल्ली, एनसीआर में जो स्मॉग है, वह सिर्फ पराली का ही नहीं है, बल्कि इसकी तह में अगर जाया जाए तो आपको साफ पता चल जाएगा कि इसके कई कारण हैं, जिसमें प्रमुख रूप से वाहनों का प्रदूषण भी है। सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद दिल्ली सरकार ने ऑड इवन फार्मूला तो लागू किया, मगर उसका कोई बहुत ज्यादा फायदा नजर नहीं आया, क्योंकि सुप्रीर्म कोर्ट ने सरकारों को फटकार लगाते हुए कहा भी है कि चीन और अन्य देशों से सरकारें क्यों नहीं सीख रही और ऑड इवन में छूट क्यों दी जा रही है। सरकारें, पार्टिय