समय का पहिया घूम रहा है।


2014 के लोकसभा चुनाव के बाद जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया और उसके बाद कई प्रदेशों में कांग्रेस से सत्ता भी छीनी तो उसके बाद तो जैसे भाजपा के हर छोटे-बड़े नेता ने दंभ में आकर कांग्रेस मुक्त भारत का नारा लगाना शुरू कर दिया। 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद फिर से भाजपा के इस नारे को बल मिला और 300 पार बहुमत पाकर नरेन्द्र मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बने और कांग्रेस के कमजोर नेतृत्व ढुलमुल राजनीतिक रवैए से लोगों को ऐसे लगने लगा की भाजपा तेजी से कांग्रेस मुक्त भारत के सपने की तरफ बढ़़ रही है। 2014 से लेकर 2017 तक भाजपा ने देश के ज्यादातर राज्यों में भाजपा या भाजपा गठबंधन सरकारें बनाने में सफलता पाई और देश के 70 प्रतिशत क्षेत्रफल में भाजपा ही नजर आने लगी थी। मध्यप्रदेश, राजस्थान, यूपी, महाराष्ट्र से लेकर हर छोटे-बड़े राज्य में भाजपा का ग्राफ तेजी से बढ़ता जा रहा था और कांग्रेस गठबंधन सरकारें धाराशाही होती जा रही थी। सत्ता के मद में चूर भाजपा नेताओं के भाषणों से अहंकार झलकने लगा था, लेकिन वर्तमान में अगर गत दिवस महाराष्ट्र से भी भाजपा के सत्ता गंवाने के बाद अगर पूरे देश में नजर दौड़ाए जाए तो तेजी से देश में भाजपा का ग्राफ गिरा है और जो भाजपा 2017 में देश के 72 प्रतिशत क्षेत्रफल में अपनी या अपने सहयोगियों के दम पर सत्ता में थी, वह गिरकर अब मात्र 40 प्रतिशत तक सिमट गई है और राजस्थान, मध्यप्रदेश, पंजाब के बाद एक और बड़ा राज्य महाराष्ट्र भी भाजपा के हाथ से फिसल गया है। बावजूद इसके की महाराष्ट्र में वह सबसे बड़ा दल है। उसके बावजूद बहुमत न होने के बाद सरकार बनाने के बाद अति आत्मविश्वास में भाजपा यहां भी सरकार ंगंवा बैठी। भाजपा के रथ को देश में रोकने में कांग्रेस से ज्यादा कई क्षत्रपों की कोशिशें नजर आती हैं, क्योंकि केन्द्रीय स्तर पर कांग्रेस नेतृत्व भाजपा को रोकने में एक तरह से विफल ही रहा है, लेकिन दक्षिण भारत में कई राजनीतिक पार्टियों ने भाजपा को रोकने में सफलता पाई है। आने वाले समय में अगर कांग्रेस केन्द्रीय नेतृत्व सूझबूझ दिखाते हुए अपने मजबूत क्षेत्रीय नेताओं को आगे करती है तो केन्द्र में भी भाजपा को सत्ता से बेदखल किया जा सकता है। 

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