अयोध्या फैसले की आड़ में अपना एजेंडा सेट करता एक राजनीतिक दल!
अयोध्या फैसले की आड़ में अपना एजेंडा सेट करता एक राजनीतिक दल!
रामजन्म भूमि को लेकर पिछली कई सदियों से जारी विवाद जब पिछले पखवाड़े सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया तो सभी ने इसका स्वागत किया। करना भी चाहिए क्योंकि हमारे देश में सुप्रीम कोर्ट से ऊपर कुछ भी नहीं और न्यायालय के फैसलों का हमें सम्मान करना चाहिए। भले ही अयोध्या विवाद धर्म से जुड़ा हुआ था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जिस सुझबुझ से विवाद की लगातार सुनवाई करके इस मामले में फैसला दिया, उसकी चहुंओर प्रशंसा हो रही है और विभिन्न मुस्लिम संगठनों ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सही माना है। देश की जनता पहले ही इस मामले में मूड बना चुकी थी की सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सभी पक्षों की पैरवी सुनते हुए तर्कसंगत फैसला ही सुनाएगा। देश अदालतें और देश की जनता तो अपनी जिम्मेवारियां भली भांति निभा रही हैं, लेकिन राजनीति से जुड़े कुछ लोगों के पेट में दर्द शुरू हो जाता है, जब उनकी राजनीतिक रोटियां सेंकने का एक अहम मुद्दा उनके हाथ से चला गया और देशभर में शांति भी रही। देश में कट्टरता की विचारधारा से ओतप्रोत सत्तासीन पार्टी के नेताओं को अयोध्या मामले में शायद इतनी जल्दी फैसले की उम्मीद नहीं थी और यही कारण है कि जब देशभर में इस फैसले को सभी धर्मों से जुड़े लोग स्वीकार कर चुके हैं तो कुछ नेता अब इस फैसले की आड़ में अपना हिंदुतत्ववादी एजेंडा सेट करने तथा फैसले का श्रेय लेने की कोशिशें कर रहे हैं। गत दिवस मन की बात में हमारे प्रधानमंत्री जी ने बहुत ही चालाकी से इस अयोध्या फैसले का जिक्र किया और एक तरह से फैसले का श्रेय लेने की कोशिश करते हुए दिखाई दिए। पहली बात तो ये प्रधानमंत्री जी को इस अति संवेदनशील मुद्दे पर बात करने की आवश्यकता की क्या थी? दूसरी बात अगर वे इस फैसले की आड़ में राजनीतिक संदेश देना चाह रहे हैं तो यह देश की एकता व अखंडता के लिए सही नहीं है, क्योंकि भारत सभी धर्मों, संप्रदायों का देश है और इस देश में सभी धर्मों के लोगों को समान अधिकार हैं। सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या मामले के फैसले को किसी एक धर्म की जीत या दूसरे पक्ष की हार देखने की बजाय इस दिशा में देखना चाहिए कि अति संवेदनशील विवादित मुद्दे पर फैसला आया और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सभी को आदर करना चाहिए, बजाय इस फैसले की आड़ में अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने और अपना एजेंडा सेट करने की कोशिश करने के। प्रधानमंत्री के अलावा उनकी पार्टी के अन्य नेता भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का श्रेय भाजपा व आरएसएस को दे रहे हैं और बार-बार ऐसे भाषण भी दे रहे हैं, जिससे किसी भी भावनाओं को ठेस पहुंच सकती है।
रामजन्म भूमि को लेकर पिछली कई सदियों से जारी विवाद जब पिछले पखवाड़े सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया तो सभी ने इसका स्वागत किया। करना भी चाहिए क्योंकि हमारे देश में सुप्रीम कोर्ट से ऊपर कुछ भी नहीं और न्यायालय के फैसलों का हमें सम्मान करना चाहिए। भले ही अयोध्या विवाद धर्म से जुड़ा हुआ था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जिस सुझबुझ से विवाद की लगातार सुनवाई करके इस मामले में फैसला दिया, उसकी चहुंओर प्रशंसा हो रही है और विभिन्न मुस्लिम संगठनों ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सही माना है। देश की जनता पहले ही इस मामले में मूड बना चुकी थी की सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सभी पक्षों की पैरवी सुनते हुए तर्कसंगत फैसला ही सुनाएगा। देश अदालतें और देश की जनता तो अपनी जिम्मेवारियां भली भांति निभा रही हैं, लेकिन राजनीति से जुड़े कुछ लोगों के पेट में दर्द शुरू हो जाता है, जब उनकी राजनीतिक रोटियां सेंकने का एक अहम मुद्दा उनके हाथ से चला गया और देशभर में शांति भी रही। देश में कट्टरता की विचारधारा से ओतप्रोत सत्तासीन पार्टी के नेताओं को अयोध्या मामले में शायद इतनी जल्दी फैसले की उम्मीद नहीं थी और यही कारण है कि जब देशभर में इस फैसले को सभी धर्मों से जुड़े लोग स्वीकार कर चुके हैं तो कुछ नेता अब इस फैसले की आड़ में अपना हिंदुतत्ववादी एजेंडा सेट करने तथा फैसले का श्रेय लेने की कोशिशें कर रहे हैं। गत दिवस मन की बात में हमारे प्रधानमंत्री जी ने बहुत ही चालाकी से इस अयोध्या फैसले का जिक्र किया और एक तरह से फैसले का श्रेय लेने की कोशिश करते हुए दिखाई दिए। पहली बात तो ये प्रधानमंत्री जी को इस अति संवेदनशील मुद्दे पर बात करने की आवश्यकता की क्या थी? दूसरी बात अगर वे इस फैसले की आड़ में राजनीतिक संदेश देना चाह रहे हैं तो यह देश की एकता व अखंडता के लिए सही नहीं है, क्योंकि भारत सभी धर्मों, संप्रदायों का देश है और इस देश में सभी धर्मों के लोगों को समान अधिकार हैं। सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या मामले के फैसले को किसी एक धर्म की जीत या दूसरे पक्ष की हार देखने की बजाय इस दिशा में देखना चाहिए कि अति संवेदनशील विवादित मुद्दे पर फैसला आया और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सभी को आदर करना चाहिए, बजाय इस फैसले की आड़ में अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने और अपना एजेंडा सेट करने की कोशिश करने के। प्रधानमंत्री के अलावा उनकी पार्टी के अन्य नेता भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का श्रेय भाजपा व आरएसएस को दे रहे हैं और बार-बार ऐसे भाषण भी दे रहे हैं, जिससे किसी भी भावनाओं को ठेस पहुंच सकती है।
Excellent Blog
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