कौन सा लोकतंत्र और कैसी मर्यादा?

हमाम में सब नंगे हैं यहां, मौका मिलने पर दाग अच्छे हैं यहां
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का दम भरने वाले हम भारतीय पिछले एक माह से महाराष्ट्र के महा सियासी ड्रामे के गवाह बन रहे हैं। इस पूरे प्रकरण को हमारे लोकतंत्र की खासियत कहें या कमजोरी। बहुमत, अल्पत, पक्ष-विपक्ष के आरोप-प्रत्यारोपों के बीच सुप्रीम कोर्ट के आज आए फैसले के बाद फडऩवीस को 27 नवंबर सांय तक फ्लोर टैस्ट साबित करना होगा। उम्मीद के विपरित जिस प्रकार से देवेन्द्र फडऩवीस ने एनसीपी नेता अजित पवार के साथ मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री की शपथ ली तो उसके बाद पूरे देश में महाराष्ट्र की राजनीति की चर्चा चल पड़ी की भाजपा ने एक बार फिर कांग्रेस समेत तमाम विपक्ष राजनीतिक मात दी, लेकिन शरद पवार, उद्धव ठाकरे ने गत दिवस होटल में 162 विधायकों का साथ होने का दावा किया और विधायकों की शपथ की बात भी कही। शरद पवार, उद्धव ठाकरे का यह दावा कितना सही है यह तो 27 नवंबर को सांय 5 बजे ही पता चल पाएगा, लेकिन राजनीति में हर मिनट महत्वपूर्ण होता है। हमने कई बार परिस्थितियों को बदलते हुए, विधायकों की आस्था बदलते हुए, तमाम उम्मीदों के विपरित सरकारों को बदलते हुए, फ्लोर टैस्ट पास होते हुए, फ्लोर टैस्ट विफल होते हुए भी देखा है। केन्द्र और महाराष्ट्र में सत्ता पर काबिज होने का फायदा निश्चित तौर पर भाजपा मिल रहा है और इसी के बलबूते पर वे गोवा, कर्नाटक, असम में सरकारें बनाई अल्पमत में होने के बावजूद भी। विपक्ष का आरोप है की तमाम लोकतांत्रिक मर्यादाओं और जनमत को झुठलाते हुए पिछले कुछ वर्षों में भाजपा ने सीबीआई, इडी का राजनीतिक दुरूपयोग किया और अपने विपक्षियों पर हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। अजित पवार पर से ईडी के मामले रफा-दफा करने की बातें भी सामने आ रही हैं किस प्रकार भाजपा के साथ आने से उन्हें राहत प्रदान की जा रही हैं। संसद में भी कांग्रेस ने कहा कि भाजपा  लोकतंत्र की हत्या कर रही है। निश्चित तौर पर कांग्रेस का दावा सही है, लेकिन क्या कांग्रेस ने कभी ऐसा नहीं किया? 2009 मेें हरियाणा विधानसभा चुनाव के बाद हजकां के पांच विधायकों को किस प्रकार से तोड़कर तत्कालीन हुड्डा सरकार ने सरकार चलाई थी वह सबके सामने है। और भी कई उदाहरण मिल जाएंगे जब सत्तासीन पार्टी ने सरकार बनाने, चलाने के लिए इस तरह के हथकंडे अपनाए। भले ही वो लोकतांत्रिक मर्यादाओं के परे ही क्यों न हों।  तो बात तो साफ है की जिसको भी मौका मिला, उसने अपने-अपने हिसाब से हमारे इस लोकतंत्र की व्याख्या की और अब बारी भाजपा की है। बेशक 27 नवंबर को देवेन्द्र फडऩवीस बहुमत साबित करने में सफल न रहें, लेकिन केन्द्र एवं प्रदेश में सत्ता होने का उन्हें पूरा-पूरा लाभ मिलने जा रहा है। अब देखते हैं की एनसीपी, कांग्रेस व भाजपा कैसे अपने-अपने विधायकों को बचा पाते हैं। 

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