वैलेंनटाइन डे और मैं...
मज़बूरियां, जि़म्मेदारियां और फरेबी ज़माना,
कहने देगा नहीं, की दिल में बसा है फ़साना,
पता तो है उसको, लेकिन क्यों कहलवाना,
प्यार सिर्फ पाना नहीं, असल तो है निभाना,
क्या हुआ नहीं मिले, चाहूंगा उसको जीवन भर,
दुनियादारी मेें भले गलत हो मेरा ये अफ़साना,
सोचा था फ़िल्मों में ही होता है प्यार का परवाना,
क्या पता था देख उसको दिल हो जाएगा दिवाना,
सुुरूर कुछ ऐसा है इसका की फ़िका दिखे मयखाना,
दिल की सुनूं या कह दूं उसे फिर मुझे याद न आना।।
-मोहित
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