निकलता हूँ घर से... निकलता हूँ घर से कमाने, पहुंच जाता हूँ, मैं मयखाने, कितना कमाउं ‘ए-जमाने’ उतना ही, जा पाउं मयखाने, दर्द मिटाने और उसे जतानेे, आना पड़ता है, मुझे मयखाने, जाता हूँ अब, जिम्मेवारी निभाने, लोग न कह दें, की हो गए दिवाने। पढ़ लो इतिहास के अफसाने, ऐसे नहीं मिलेंगे और दिवाने।
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Showing posts from 2024
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तूझसे नहीं मिलेंगे तो क्या, मर थोड़ी जाएंगे। हम फिर से नई उलझनों में उलझ जाएंगे।। याद तेरी आएगी फिर मयखाने में चले जाएंगे। नई महफिलों में, नए यारों में घुलमिल जाएंगे।। मुबारक हो तूझे तेरा शहर, हम नया शहर बसाएंगे। हम रांझा, हीर या देवदास से मिलकर नहीं आएंगे।। अपनी अधूरी पे्रम कहानी को यूं ही लिखते जाएंगे। बेशक है दिल में दर्द, पर हर जिम्मेवारी निभाएंगे।। याद आएगी वो, जब सांस हम लेते जाएंगे। तूझसे नहीं मिलेंगे तो क्या, मर थोड़ी जाएंगे।।
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मैं जन्मदिन कैसे मनाऊं... जन्मदिवस को आज पता नहीं कैसे खुशी मनाऊं, बहुतों ने भेजी शुभकामनाएं कैसे आभार जताऊं, ंखुशी हुई हैं याद करने वाले बहुत, किस-किस का नाम उताऊं, इतने सालों में क्या खोया, क्या पाया, सोचा और क्या पाउँ, सब कुछ मिल गया जब बेटी बोली ‘पापा’ जन्मदिन मैं मनाऊं, दिल में टीस है एक बहुत ही गहरी, अब ये किसे बताऊँ।
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...क्यूं तेरे ही दर पहुंच रहा हूं। पता मैं मेरे घर का पूछ रहा हूं, बार-बार तेरे ही घर पहुंच रहा हूँ, काफी दिनों से अपने ही शहर में, मैं अंजाना सा बना घूम रहा हूँ, मेरे घर का पता मुझे पता है, पता नहीं क्यूं तेरे ही दर पहुंच रहा हूँूं, रखकर पत्थर अपने दिल पर, सूरत किसी ओर की देख रहा हूँ पता नहीं क्यूं मैं भूल नहीं पा रहा हूँ, नई सूरत ढूंढ नहीं पा रहा हूँ शायद मंजूर नहीं है तेरे इस खुदा को, तूझे क्यूं भूला नहीं पा रहा हूँ, आज भी है मुझे इंतजार तेरा, बेशक मैं कुछ कर नहीं पा रहा हूँ, भूल नहीं पाउंगा, छोड़ नहीं पाउंगा, भले मैं तूजसे दूर जा रहा हूँ, मजबूरियां होंगी तेरी भी बहुत, शायद मैं समझ नहीं पा रहा हूँ, काफी दिनों से अपने ही शहर में, मैं अंजाना सा बना घूम रहा हूँ, पता मैं मेरे घर का पूछ रहा हूं, बार-बार तेरे ही घर पहुंच रहा हूँ, अब नहीं आउंगा, दूर चला जाउंगा, पागल दिल को समझा रहा हूँ।
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अब और नहीं कहूंगा.. इतना बड़ा समुन्द्र मुझे डूबो ना सका, ये दो बूंद क्या मुझे खाक डुबोएगी, दो घूंट अभी मैं और पी सकता हूँ, मेरे पैर और जुबां लडख़ड़ाए नहीं, जिंदगी के गम हम सहने को तैयार हैं, बस तेरी ही हां में हां का इतंजार है, अब और नहीं कहूंगा, समझा नहीं सकूंगा, थक गया हूं मैं अब और नहीं कहूंगा।। -मोहित
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...एक और भूल की इजाजत है तुम्हें भूल सको तो भूल जाओ इजाजत है तुम्हे, ना भूल सको तो लौट कर आना, एक और भूल की इजाजत है तुम्हे, टूटे दिल को हम तो समझा बैठे हैं, किस्मत ने क्या-क्या रग दिखाए हमें, किसी को पाना नहीं है जिदंगी, मगर भूल कैसे जाएं तुम्हे, जब पलटेंगे जिदंगी के पन्ने कभी, जाउंगा वहीं, देखने तुम्हे कभी, ऐ जिंदगी बता क्या वो मिल पाएंगे हमें, या फिर यूं ही कट जाएंगे जीवन के ये लम्हे, मैं आउं फिर से लौटकर देखने तुम्हे, या फिर ख्वाबों में ही मिलोगे तुम हमें। -मोहित
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‘‘22 जनवरी का दिन बनेगा खास, खत्म हुआ कलियुग का वनवास’’ नई दिल्ली : पिछले 500 वर्षों में अथक संघर्ष, अनेक राजनीतिक, सामाजिक आंदोलनों को झेलने वाली अयोध्या के लिए 22 जनवरी का दिन ऐतिहासिक होने जा रहा है जब नवनिर्मित भव्य मंदिर में भगवान राम की प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा होगी। समूचे देश और यहां तक की विदेशों में भी हिंदू समाज इस दिन को ऐतिहासिक और भव्य बनाने के लिए जुट गया है और जगह-जगह मंदिरों को सजाया गया है तथा दिपावली पर्व की तरह मनाने की पूरी तैयारियां हर जगह हो गई है। राम का नाम असल में हर भारतीय के अंतर्मन में बसा है और भारतीय जनता पार्टी इस दिन को भुनाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ रही। भारतीय जनता पार्टी की जब स्थापना हुई थी तो पार्टी ने कुछ लक्ष्य तय किए किए थे, जिसमें अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण भी शामिल था। पिछले 40 सालों की भाजपा की राजनीति पर अगर नजर दौड़ाई जाए तो धारा 370 और अयोध्या में राम मंदिर की स्थापना दो ऐसे मुद्दे रहे हैं, जो हर बार पार्टी के घोषणा पत्र में शामिल रहे हैं। जबकि पार्टी का दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा राम मंदिर की स्थापना पूरा होने जा रहा है तो 202
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रात का वो पहर... छाया था घना अंधेरा, धुंध थी चारों ओर निकला था मैं घर को, मिल गया कोई ओर, सुनकर बातें उसकी, सन्नाटा सा छा गया चहूं ओर, एक तरफ था उसका चेहरा, दूसरी ओर सर्दी का कहर, फिर देख नशीली आंखे उसकी, खो गया मैं कहीं ओर, बातों ही बातों में छेड़ गया वो मेरे सोए दिल के तार, निकला था मैं घर को, मिल गया कोई ओर, खुली आंखे जैसे ही भूल गया मैं रात का वो पहर... -मोहित
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बस इतना बता दो... जाना कहां है मुझे, बस इतना बता दो, एक रास्ता मेरे घर को, दूसरा बता दो, मकान और घर में, फर्क है ये भी बता दो, जिदंगी गुजारी मकान में, घर है क्या बता दो, चाहा जो मिला नहीं, मिला जो चाहा नहीं, चाह मुझे घर की है, मकान मुझे मंजूर नहीं, घर बनता अपनों से, मकान अपना नहीं, रहता हूं मकान में, पर दिल यहां लगा नहीं, रहेगा अफसोस मुझे, घर मैं बना सका नहीं, जिंदगी बितने से पहले, घर बना पाउंगा या नहीं।। रास्ता है एक गलत, जाउं क्या बता दो, जाना कहां है मुझे, बस इतना बता दो।। -मोहित
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एक रात मुझे वो मिली... था मैं परेशान, क्योंकि काम करते-करते थकान हुई, निकला था मैं दफ्तर से रास्ते में उससे मुलाकात हुई, मन नहीं था मेरा, बस ऐसे ही जान-पहचान हुई, महफिल में थे सब उसके दिवाने, मुझे भी भा गई, रूप नहीं था खास, उसकी कड़वाहट पसंद आ गई, बदन में लगी तरंगे दौडऩे और मस्ती मुझे छा गई, गलत हूं मैं, पर एक बार दिक्कतें वो मिटा गई, दुनिया कहती गलत उसे, पर हर दिवाने की खास हुई, निकला था मैं दफ्तर से, जब उससे मुलाकात हुई।। -मोहित
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मेरा एक मित्र.. सनकी सा है मेरा एक मित्र, हो रही उसकी निंदा सर्वत्र, अपनों से हो रहा है वो दूर, समझाते हैं, पर है मजबूर, करता दिल की, नहीं कसूर, कब तक रखूं मैं उसे दूर, समय सिखा ही देगा, हुजूर, सनकी सा है मेरा एक मित्र, मगर दिल है उसका पवित्र, बढिया है, उसका चरित्र। समझा सके तो समझा दो मित्र, ये दुनिया है बहुत ही विचित्र।। -मोहित