रात का वो पहर...
छाया था घना अंधेरा, धुंध थी चारों ओर
निकला था मैं घर को, मिल गया कोई ओर,
सुनकर बातें उसकी, सन्नाटा सा छा गया चहूं ओर,
एक तरफ था उसका चेहरा, दूसरी ओर सर्दी का कहर,
फिर देख नशीली आंखे उसकी, खो गया मैं कहीं ओर,
बातों ही बातों में छेड़ गया वो मेरे सोए दिल के तार,
निकला था मैं घर को, मिल गया कोई ओर,
खुली आंखे जैसे ही भूल गया मैं रात का वो पहर... -मोहित
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