मेरा एक मित्र..                                                   


सनकी सा है मेरा एक मित्र,

हो रही उसकी निंदा सर्वत्र,

अपनों से हो रहा है वो दूर,

समझाते हैं, पर है मजबूर,

करता दिल की, नहीं कसूर,

कब तक रखूं मैं उसे दूर,

समय सिखा ही देगा, हुजूर,

सनकी सा है मेरा एक मित्र,

मगर दिल है उसका पवित्र,

बढिया है, उसका चरित्र।

समझा सके तो समझा दो मित्र,

ये दुनिया है बहुत ही विचित्र।।

-मोहित 

Comments

Popular posts from this blog