...क्यूं तेरे ही दर पहुंच रहा हूं।



पता मैं मेरे घर का पूछ रहा हूं, बार-बार तेरे ही घर पहुंच रहा हूँ,

काफी दिनों से अपने ही शहर में, मैं अंजाना सा बना घूम रहा हूँ,


मेरे घर का पता मुझे पता है, पता नहीं क्यूं तेरे ही दर पहुंच रहा हूँूं,

रखकर पत्थर अपने दिल पर, सूरत किसी ओर की देख रहा हूँ


पता नहीं क्यूं मैं भूल नहीं पा रहा हूँ, नई सूरत ढूंढ नहीं पा रहा हूँ

शायद मंजूर नहीं है तेरे इस खुदा को, तूझे क्यूं भूला नहीं पा रहा हूँ,


आज भी है मुझे इंतजार तेरा, बेशक मैं कुछ कर नहीं पा रहा हूँ,

भूल नहीं पाउंगा, छोड़ नहीं पाउंगा, भले मैं तूजसे दूर जा रहा हूँ,


मजबूरियां होंगी तेरी भी बहुत, शायद मैं समझ नहीं पा रहा हूँ,

काफी दिनों से अपने ही शहर में, मैं अंजाना सा बना घूम रहा हूँ,


पता मैं मेरे घर का पूछ रहा हूं, बार-बार तेरे ही घर पहुंच रहा हूँ,

अब नहीं आउंगा, दूर चला जाउंगा, पागल दिल को समझा रहा हूँ।

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