क्या प्याज से अब आंसू निकलना बंद हो गए?


किसी समय हमारे देश में प्याज की बढ़ी कीमतों के कारण सरकार तक गिरा दी थी, लेकिन पूरे देश में पिछले छह माह से भी अधिक समय से प्याज की कीमतों में आग लगी हुई है, लेकिन न तो सरकार के कानों पर जूं रेंग रही है और न ही विपक्ष के लिए भी अब बढ़ती प्याज की कीमतें कोई मुद्दा रह गई हैं। रोजमर्रा की भागदौड़ में व्यस्त आम जनमानस ने भी शायद अब बढ़ती कीमतों के साथ समझौता सा कर लिया है। भले ही प्याज की कीमतें पेट्रोल के दामों से भी ऊपर निकल गई हों। सरकार, विपक्ष और आम लोगों के इस रवैए से लग रहा है की प्याज से अब लोगों के आंसू निकलना बंद हो गए हैं। हो सकता है चाइना से कोई ऐसा बीज आ गया हो, जिससे प्याज ने आंसू निकालना बंद कर दिया हो। आज देश की राजधानी से लेकर विभिन्न राज्यों में प्याज की कीमतें आसमान छू रही हैं। थोक मंडियों में जहां प्याज 50 से 60 रूपए प्रति किलों, वहीं खुदरा बाजार में ब्याज 90 से 100 रूपए प्रति किलों के हिसाब से बिक रहा है। प्याज की बढ़ती कीमतों पर लगाम कसने, मांग को पूरा करने की दिशा में ठोस कदम उठाने की बजाय केन्द्र सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी नजर आ रही है। बेशर्मी की हद देखिए की फूड एंड कंज्यूमर अफेयर्स मिनिस्टर रामविलास पासवान से जब प्याज की किल्लत के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह हमारे हाथ में नहीं है। सरकार प्रयास कर रही है, लेकिन भगवान से कौन जीत सकता है। मतलब केन्द्रीय मंत्री भी साफ कह रहे हैं कि प्याज की कीमतों पर लगाम कसने में वे असफल हैं और भगवान ही प्याज की किल्लत को दूर कर सकते हैं। फिर इनसे पूछिए की मंत्री क्यों बने बैठे हैं। इस्तीफा दे दीजिए, देश भी भगवान ही चला लेंगे। आपकी क्या जरूरत है। सरकार कह रही है की महाराष्ट्र एवं अन्य राज्यों में बारिश से प्याज की फसलें खराब हो गई, इसलिए किल्लत बढ़ रही है, लेकिन प्याज की कीमतों में उछाल तो पिछले पूरा साल रहा है। अब सरकार प्याज की कम पैदावार को दोष दे रही है, लेकिन ये ही देश है जहां वाजिब कीमतें न मिलने के विरोध में किसानों ने प्याज सरेआम सड़क पर फैंक दिए थे। प्याज ही नहीं टमाटर, आलू जैसी अन्य सब्जियों के दाम किसानों को पूरे नहीं मिलते और वे सरकारी नीतियों से तंग आकर अपनी फसलों को नष्ट करने पर मजबूर होते हैं। सोचिए अगर किसान सरकारी रवैए से तंग होकर सब्जियां उगाना ही बंद कर दें तो क्या होगा? प्याज, आलू, टमाटर सहित अन्य सब्जियां उगाने वाले किसान आज भी कर्ज के बोझ तले दबते जा रहे हैं और उनके लिए सब्जियां या फसलें कोई फायदे का सौदा नहीं हैं। इन सबके लिए कौन जिम्मेवार हैं? जरा सोचिए।

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