मेरे देश में हवा भी जहरीली और खाना भी
देश में हवा भी जहरीली और खाना भी
दिल्ली, एनसीआर में वायू प्रदूषण के बढ़ते स्तर पर जब मैं लिख रहा था तो मेरे जहन में यह बात भी आई की हमारे देश में सिर्फ हवा में ही जहर तेजी से नहीं फैल रहा, बल्कि खाद्य पदार्थों में बढ़ती जा रही मिलावट से भी देशवासी जहर खाने को मजबूर हैं। अब हवा भी जहरीली और खाना भी जहरीला। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई जैसे बड़े शहरों से लेकर देश के हर छोटे-मोटे शहर में खाद्य पदार्थों में की जा रही मिलावट का गौरखधंधा धड़ल्ले से जारी है। जिस पर न तो सरकारी अधिकारी ही लगाम कस पा रहे हंै और न ही सरकार ही इस दिशा में गंभीर नजर आती है। दालें, दूध, अनाज, मसाले, घी, सब्जी, फल से लेकर हर वह खाद्य पदार्थ आज मिलावट से अछूता नहीं है, जो कि हमारी दैनिक दिनचर्या में शामिल है। रोमर्रा की जरूरतों में उपयोग होने वाली वस्तुओं में मिलावट की वजह से हमारे शरीर पर इसका कुप्रभाव पड़ रहा है और हम जीवन की आपाधापी की व्यस्तता में इतने व्यस्त होते जा रहे हैं कि हमें यह ज्ञान ही नहीं है कि हम या हमारे बच्चे जो खा रहे हैं वह पूरी तरह से स्वच्छ, मिलावट रहित है भी या नहीं। खाद्य पदार्थों में मिलावट की वजह से पेट से संबंधित रोग, आंखों की रोशनी खत्म होना, लकवा, कुष्ठ रोग, पाचन तंत्र, यकृत व कुर्दे से संबंधित बिमारियां, एनीमिया, गर्भपात सहित अनेक जानलेवा बिमारियां फैल रही हैं। खाद्य पदार्थों में बढ़ती जा रही मिलावट से हमें स्वयं ही सावधान होना होगा, क्योंकि सरकार जब तक मिलावटखोरों पर लगाम कसने के लिए गंभीर होगी, तब तक हम गंभीर रोगों से ग्रसित हो जाएंगे, इसलिए दैनिक रोजमर्रा की हर वस्तु जो हम खरीद रहे हैं उसकी हमें भली भांति जांच-परख करने की जरूरत है, जिसमें दूध, घी, अनाज, सब्जियों से लेकर फल भी शामिल हैं। तभी हम इस जहरीली हवा वाले और मिलावटखोर वाले देश में कुछ सालों तक जिंदा रह पाएंगे।
दिल्ली, एनसीआर में वायू प्रदूषण के बढ़ते स्तर पर जब मैं लिख रहा था तो मेरे जहन में यह बात भी आई की हमारे देश में सिर्फ हवा में ही जहर तेजी से नहीं फैल रहा, बल्कि खाद्य पदार्थों में बढ़ती जा रही मिलावट से भी देशवासी जहर खाने को मजबूर हैं। अब हवा भी जहरीली और खाना भी जहरीला। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई जैसे बड़े शहरों से लेकर देश के हर छोटे-मोटे शहर में खाद्य पदार्थों में की जा रही मिलावट का गौरखधंधा धड़ल्ले से जारी है। जिस पर न तो सरकारी अधिकारी ही लगाम कस पा रहे हंै और न ही सरकार ही इस दिशा में गंभीर नजर आती है। दालें, दूध, अनाज, मसाले, घी, सब्जी, फल से लेकर हर वह खाद्य पदार्थ आज मिलावट से अछूता नहीं है, जो कि हमारी दैनिक दिनचर्या में शामिल है। रोमर्रा की जरूरतों में उपयोग होने वाली वस्तुओं में मिलावट की वजह से हमारे शरीर पर इसका कुप्रभाव पड़ रहा है और हम जीवन की आपाधापी की व्यस्तता में इतने व्यस्त होते जा रहे हैं कि हमें यह ज्ञान ही नहीं है कि हम या हमारे बच्चे जो खा रहे हैं वह पूरी तरह से स्वच्छ, मिलावट रहित है भी या नहीं। खाद्य पदार्थों में मिलावट की वजह से पेट से संबंधित रोग, आंखों की रोशनी खत्म होना, लकवा, कुष्ठ रोग, पाचन तंत्र, यकृत व कुर्दे से संबंधित बिमारियां, एनीमिया, गर्भपात सहित अनेक जानलेवा बिमारियां फैल रही हैं। खाद्य पदार्थों में बढ़ती जा रही मिलावट से हमें स्वयं ही सावधान होना होगा, क्योंकि सरकार जब तक मिलावटखोरों पर लगाम कसने के लिए गंभीर होगी, तब तक हम गंभीर रोगों से ग्रसित हो जाएंगे, इसलिए दैनिक रोजमर्रा की हर वस्तु जो हम खरीद रहे हैं उसकी हमें भली भांति जांच-परख करने की जरूरत है, जिसमें दूध, घी, अनाज, सब्जियों से लेकर फल भी शामिल हैं। तभी हम इस जहरीली हवा वाले और मिलावटखोर वाले देश में कुछ सालों तक जिंदा रह पाएंगे।
श्रीमान मोहित, मिलावट का महाजाल ही उचित वाक्य है। आपकी पोस्ट की भावना उत्तम हैं किन्तु शब्द "गोरख-धंधा" अनुचित है। महायोगी भगवान शिव गुरू स्वरूप में गुरू गोरखनाथ कहलाए जाते हैं।भगवान गुरू गोरख जैसे पवित्र नाम को किसी घटिया धंधे से ना जोडे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचती है और शिव तो सदैव कल्याण ही करते हैं कोई धंधा नही इसमें कोई संदेह है ही नहीं।
ReplyDeleteअगर आप इस अनुचित शब्द के स्थान पर किसी बेहतर संज्ञा जैसे ठगधंधा /काला धंधा /काला कारोबार/अवैध कारोबार अनैतिक कारोबार /कलंकित कारोबार /भंवरजाल /मकड़जाल/ घपला/गोलमाल /गडबडझाला /घोटाला /भ्रष्ट कारोबार इत्यादि जैसे शब्दों का प्रयोग करें और रिपोर्टिंग टीम को इस पहलू की ओर भविष्य में भी सचेत करें तो आपकी ज्वलंत पत्रकारिता उम्दा प्रतीत होगी। और पाठकगण भी एक जुडाव महसूस कर पाएंगे।
क्र्प्या इस शब्द को हटाकर "महाजाल या मकड़जाल" लिख दें यही सुझाव भी है और विनती भी।
अलखनिरंजन।।।
श्रीमान विशु जी सुझाव के लिए धन्यवाद। मेरा उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं था। शब्दों में त्रुटि हो सकती है, लेकिन पत्रकारिता की भाषा में गोरखधंधा ही ज्यादा प्रचलित शब्द है। अगर आपकी भावनाओं को ठेस पहुंची है तो इसके लिए माफी। धन्यवाद।
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