रात कैसे निकली मेरी... मैं क्या बताउं, किसे बताउं की नींद आती नहीं, करवटें बदलता रहता हूं, लेकिन चैन आता नहीं, चाहता हूं भूलना बहुत कुछ, पर भूल पाता नहीं, किसकी तलाश में है ये दिल, मुझे पूरा पता नहीं, सोचता हूं पैग लगा लूं, पर अकेला मैं पीता नहीं, रात ऐसे निकली मेरी, दिन बिता कैसे पता नहीं।
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मेरा एक मित्र.. सनकी सा है मेरा एक मित्र, हो रही उसकी निंदा सर्वत्र, अपनों से हो रहा है वो दूर, समझाते हैं, पर है मजबूर, करता दिल की, नहीं कसूर, कब तक रखूं मैं उसे दूर, समय सिखा ही देगा, हुजूर, सनकी सा है मेरा एक मित्र, मगर दिल है उसका पवित्र, बढिया है, उसका चरित्र। समझा सके तो समझा दो मित्र, ये दुनिया है बहुत ही विचित्र।। -मोहित
Nice
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