क्या यह लोकतांत्रिक देश की निशानी है?

-मोहित भारद्वाज-
जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी ने नोटबंदी, जीएसटी जैसे प्रावधानों को तमाम विरोधों, शंकाओं, अर्थशात्रियों की सलाह को ठुकराकर लागू किया था, उसी प्रकार से समान नागरिकता और एनआरसी जैसे बिलों को जबरदस्ती देश पर थोप दिया गया है, जिसका चहुं ओर विरोध हो रहा है। भले ही नोटबंदी, जीएसटी जैसे प्रावधानों ने इस देश की अर्थव्यवस्था को तहस-नहस कर दिया हो, लेकिन केन्द्र सरकार अपने अडिय़ल रवैए पर चलते हुए तानाशाही नीतियां थोप रही हैं। उनकी नीतियों का विरोध करने वाले लोगों को देशद्रोही, उग्रवादी, नक्सलवादी, राष्ट्रविरोधी करार दिया जा है, जिससे देश में अशांति, डर का माहौल पैदा हो रहा है। रविवार को नई दिल्ली के जामिया नगर में हुई हिंसा और पुलिस बर्बरता पर बहुत सारी बातें हो रही हैं। मीडिया का एक वर्ग प्रदर्शन करने वाले छात्रों को उग्रवादी, हिंसावादी बताने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा, लेकिन जिस प्रकार से दिल्ली पुलिस ने विश्वविद्यालयों के अंदर घुसकर, होस्टलों के अंदर जाकर आंसू गैस, लाठीचार्ज से छात्रों को पीटा है, उससे पूरे देश के छात्र वर्ग में उबाल आ गया है। समान नागरिकता कानून के विरोध में दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे छात्रों के बाद हिंसा किसने भड़काई यह जांच का विषय है, मगर दिल्ली पुलिस ने छात्रों के साथ जो किया बर्बरता ही कहा जाएगा। पुलिसिया खौफ से हॉस्टल में रह रहे छात्र-छात्राएं अपने घरों को लौट रहे हैं। उनकी पढ़ाई प्रभावित हो रही है। भाजपा शासित इस देश में अब प्रदर्शन करने का अधिकार भी छीना जा रहा है। हजारों की संख्या में शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे हजारों छात्र, छात्राएं क्या नक्सलवादियों, उग्रवादियों के बहकावे में आ सकते हैं? क्या उनमें इतना भी विवेक नहीं है कि क्या गलत है और क्या सही? तो कैसे भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियां छात्रों को गलत ठहराने पर तुली हुई है? आइआईटी से संबंधित तीन प्रतिष्ठित संस्थानों सहित देश के अन्य क्षेत्रों के छात्रों ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया और अलगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में छात्रों पर हुई बर्बरता के विरोध में अपनी आवाज़ बुलंद की है। हम अपने आपको दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश होने का दंभ भरते हैं, मगर पिछले कुछ सालों में इस देश में विरोध करने वाले लोगों की आवाज़ को जबरदस्ती दबाया जा रहा है या उन पर देशद्रोही होने का ठपा चस्पा कर दिया जाता है। सत्ता के नशे में चूर केन्द्र सरकार की सोच, कार्यप्रणाली और तानाशाही नीतियां देश को किस ओर ले जा रही है? सोशल मीडिया, बिकाऊ प्रिंट व इलेक्ट्रिोनिक मीडिया देश की सही तस्वीर लोगों तक पहुंचने से रोकने के लिए हर पैंतरे अपना रहा है। एक शांतिपूर्वक और लोकतांत्रिक देश को अराजकता की ओर ले जाने में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का भी अहम योगदान माना जाएगा। मीडिया के जो साथी सच्चाई लिखना और दिखाना चाहते है उनकी आवाज का गला घोंटा जा रहा है, मगर सत्तासीन लोग यह भूल गए हंै कि इस देश की आवाज़ को लाठी, गोली से दबाया नहीं जा सकता और जिस प्रकार से जामिया पुलिस बर्बरता के बाद पूरे देश के छात्र वर्ग में रोष है अगर वह बढ़ता रहा तो जन आंदोलन का रूप ले सकता है। छद्म राष्ट्रवाद का ढोल पीटकर एक विचारधारा थोपने की कोशिश करने वाले लोगों से सावधान रहने की जरूतर है। असम, मेघालय, पश्चिम बंगाल में फैल रही यह आग पूरे देश को अपनी चपेट में ले रही है। दुनिया के सामने हमारी छवि एक सांप्रदायिक देश के रूप में विख्यात होती जा रही है। क्या खत्म होती जा रही अर्थव्यवस्था, घटते रोजगार, बढ़ती बेरोजगारी, बढ़ते महिला अपराधों जैसे बुनियादी मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए इस तरह के पैंतरे गढ़े जाते हैं। पुलिस कह रही है कि असामाजिक तत्वों ने हिंसा की और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया। सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को पकडऩे की दिशा में ठोस कदम उठाने की बजाय छात्रों के विश्वविद्यालयों के कमरों में जाकर उन पर लाठियां भांजना क्या एक लोकतांत्रिक देश की निशानी है? राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, बाबा साहेब अंबेडकर के समानता के विचार को नकारकर एक सोच को थोपा जा रहा है। हिंदूराष्ट्र घोषित करने का राग अलापने वाले लोगों को यह पता होना चाहिए कि यह देश सभी धर्मों, सभी विचारों, सभी जातियों वाला देश है, जिन्हें संविधान में बराबरी का अधिकार दिया है। आजादी के बाद लागू हमारे संविधान में सभी को समानता का अधिकार दिया गया, जिस वजह से ही पिछले 50 सालों में यह देश दुनिया में विश्व शक्ति बनकर उभरा है। 

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