इतना भी बेवकूफ मत समझिए!

-मोहित भारद्वाज-
देश के एक राष्ट्रीय अखबार 'द टेलीग्राफ' ने आज की अपनी प्रथम मुख्य खबर में पीएम को झूठा करार दिया है। एनआरसी पर देश में उठे तूफान के बीच 22 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि एनआरसी के बारे में उनकी सरकार ने चर्चा तक नहीं की, जबकि अमित शाह ने लोकसभा और राज्यसभा में स्पष्ट किया था कि एनआरसी लागू होकर रहेगा। ऐसे में गत दिवस प्रधानमंत्री द्वारा यह कहना कि उनकी सरकार ने तो एनआरसी पर चर्चा तक नहीं की सीधे-सीधे जनता को बेवकूफ बनाने वाली बात ही है। अब देश की जनता किसके बयान पर भरोसा करे पीएम की या गृहमंत्री की। प्रधानमंत्री पर सार्वजनिक कार्यक्रमों में झूठे आंकड़ें पेश करने, झूठ बोलने के आरोप तो कई बार लगे हैं और विपक्षी पार्टियों के नेता अक्सर कहते रहते हैं कि नरेन्द्र मोदी ने इतना झूठ बोला है जिससे प्रधानमंत्री पद की गरिमा ही धूमिल हो गई है। ऐसे में जब सीएए और एनआरसी मुद्दे पर पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, जनता के सामने आकर अपनी सरकार का स्पष्ट नजरिया रखने और लोगों की आशंकाओं का जवाब देने की बजाय प्रधानमंत्री और गृह मंत्री अलग-अलग बयान देकर क्या लोगों को गुमराह करने की कोशिश नहीं कर रहे हैं? यह कितनी बड़ी विडंबना है कि पीएम सीधे-सीधे अपनी बातों को साबित करने के लिए झूठ का सहारा ले रहे हैं कि उनकी सरकार आने के बाद एनआरसी पर कोई बात नहीं हुई, जबकि गृह मंत्री ने सदन में एनआरसी लाने की बात कही थी। क्या देश की जनता, मीडिया इतने बेवकूफ हैं? इस दौर में प्रिंट एवं इलेक्ट्रिोनिक मीडिया के सामने भी सबसे बड़ी चुनौती है अपनी अखंडता को बचाए रखने की, क्योंकि मीडिया का एक वर्ग सरकार के हर फैसले का गुणगान करता नजर आता है और विरोध करने वाले लोगों को देशद्रोही बताने पर तुला है। मैं बधाई देना चाहता हूं 'द टेलीग्राफÓ को जिन्होंने एनडीटीवी की तरह सच्चाई लिखने के साहस दिखाया। देश की जनता को भी देखने और समझने की जरूरत है कि कौन झूठी खबरें, प्रोपेगैंडा समाचारों को दिखा व प्रकाशित करके लोगों केा गुमराह करने की कोशिश कर रहा है और मीडिया का कौन धड़ा सच्चाई के साथ खड़ा है? नागरिकता संशोधन बिल और फिर एनआरसी लाने की भाजपा की मंशा से देश भर में हिंदू-मुस्लिम की गैर जरूरी चर्चा छेड़ दी है और बड़ी संख्या में हिंदू भी इस बिल के विरोध में अपने-अपने तरीके से विरोध जता रहे हैं, क्योंकि देश का कोई भी सच्चा नागरिक चाहे वह किसी भी धर्म या जाति से हो देश को उसी आग में जाता हुआ नहीं देखना चाहता जो बंटवारे के समय हुआ था। हिंदू-मुस्लिम की बहस छेड़कर भाजपा ने एक तरह से देश की छवि को धूमिल करने का ही प्रयास किया है। असल में केन्द्र सरकार यह तह करने में विफल रही है कि उसकी प्राथमिकता क्या है? देश भर में छाई आर्थिक मंदी, घटते रोजगार, निरंतर बढ़ती महंगाई से निपटने की दिशा में अगर वह इतनी गंभीर हो जाए, जितनी गंभीर इन गैर जरूरी बिलों को लागू करने के प्रति है तो देश की आधी समस्याएं दूर हो जाएंगे, परंतु भाजपा तो अपनी हठधर्मिता पर अड़ी है। चाहे उसकी नीतियों का कितना भी ज्यादा विरोध क्यों न हो रहा हो। अब मुद्दा ये है कि आखिरकार प्रधानमंत्री अपने ही गृह मंत्री द्वारा सदन में कही गई बातों को ही क्यों झूठला रहे हैं। पीएम ने जब नोटबंदी की थी जो उन्होंने देश की जनता को यह विश्वास दिलाया था कि इससे किसी भी नागरिक को नुकसान नहीं होगा और कालेधन पर रोकथाम के लिए यह जरूरी है। देश की जनता ने भी मोदी पर विश्वास किया, मगर हुआ क्या? नोटबंदी सबसे विफल फैसला साबित हुई और जो आज देश में भीषण आर्थिक मंदी छाई हुई है, उसके लिए मोदी सरकार के नोटबंदी व जीएसटी जैसे फैसले ही जिम्मेवार माने जा रहे हैं, जिससे देश की औद्योगिक इंडस्ट्री को गहरा धक्का लगा और बड़ी संख्या में उद्योग, धंधे बंद हो गए या भारी आर्थिक हानि की चपेट में आकर आज बंद होने की कगार पर खड़े हैं। पिछले 45 सालों में सबसे ज्यादा बेरोजगारी वर्तमान दौर में देश में है। मोदी सरकार के सामने देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की इतनी बड़ी चुनौती है, मगर वह गैर जरूरी मुद्दों को हवा दे रही है। इसके पीछे पिछले लोकसभा में भाजपा को मिला प्रचंड बहुमत भी एक कारण है। मोदी व शाह लगता है कि देश की जनता उनके हर फैसले को सही मान रही है और इसीलिए उन्हें जिता रही है। इसी अति आत्मविश्वास में आकर उनकी सरकार हिंदूतत्व वादी आरएसएस की विचारधारा को देश पर थोपने की सोच रही है, मगर जिस प्रकार से सीएए और एनआरसी के विरोध में पूरा देश उठ खड़ा हुआ है, उससे पीएम के हाथ पांव फूल गए हैं और इसी कारण वे अपने गृह मंत्री द्वारा सदन में कही गई बातों को ही झूठला रहे हैं, मगर उन्हें समझना चाहिए कि इस देश की जनता भले ही उन्हें बहुमत दे सकती है, मगर उनके सारे झूठों को माने यह जरूरी नहीं है। 

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