"चौकीदार" के भेष में गोडसे की कौम!

 
क्या प्रचंड बहुमत तानाशाही का लाईसेंस है!
-मोहित भारद्वाज-
आंखे बंद कर लीजिए, कान बंद कर लीजिए, कलम चलाना भी रोक दीजिए, कुछ भी बुरा क्यों न हो रहा हो आपके सामने रियक्ट मत कीजिए, क्योंकि आप एक ऐसे देश के निवासी हैं जिसके वर्तमान हुक्मरानों के खिलाफ बोलने वालों को न के वल देशद्रोही समझा जाता है, बल्कि विरोध करने पर उनको पीटा भी जाता है। देश की सबसे प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में गत रात्रि हुई बर्बरता असल में पिछले कुछ समय से देश के ताजा माहौल को बयां कर रही है। देश के राजधानी की यूनिवर्सिटी के कैंपस में सरेआम कुछ नकाबपोश हाथों में राड, तलवार, डंडे लिए हुए आते हैं और छात्रों को पीटना शुरू कर देते हैं। हैरानी की बात है कि पुलिस विश्वविद्यालय के बाहर खड़ी रही और दो घंटे बाद तब अंदर गई जब नकाबपोशों ने कैंपस में खुली तबाही मचा ली और अनेक छात्रों को गंभीर रूप से घायल कर दिया। सोच कर ही मन सिहर उठता है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में इस तरह की घटनाएं लगातार हो रही हैं। क्या हमारे अमर शहीदों ने इसी भारत के निर्माण के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। किस और जा रहे हैं हम और किस ओर जा रहा है हमारा देश। राष्ट्रभक्ति का नाम लेकर एक कट्टर विचाराधारा को थोपने की चाह लिए हुए कुछ मानसिक रूप से बीमार लोग इस देश की आत्मा को तहस-नहस करके पिछले 50 सालों में जो पहचान दुनिया में भारत ने बनाई है उसको एक ही झटके में खत्म कर देना चाहते हैं। हिंदु, मुसलमान, सिख, ईसाई, ऋषि मुनियों के इस देश को कुछ लोग अपनी बपौती समझ बैठे हैं, क्योंकि जनता ने उन्हें प्रचंड बहुमत दे दिया। क्या बहुमत पाकर सत्तासीन लोग अपनी संकीर्ण मानसिकता को थोपने के लिए संविधान की मूल भावना को ही खत्म कर सकते हैं। इस देश ने आजादी के बाद आपातकाल जैसे दौर को भी देखा है और किस तरह आपातकाल के विरोध में मीडिया तथा बुद्धिजीवी वर्ग ने विरोध किया और फिर से देश में लोकतंत्र स्थापित किया वह सब भी देखा है, लेकिन वर्तमान में देश में जो हो रहा है वह किसी अघोषित एमरजेंसी से कम नहीं है। विरोध करने वालों, सच दिखाने तथा लिखने वालों को डराया, धमकाया जा रहा है। अगर ऐसे ही चलता रहा तो देश को गृहयुद्ध में झोंककर सत्ता में बैठे हुक्मरान तो झोला उठाकर चले जाएंगे, मगर आम जनता का क्या होगा?  जब हमारा संविधान सभी धर्मों, जातियों, संप्रदायों को एक समान समझता है। संविधान की इसी मूल भावना पर चलते हुए तमाम परेशानियों के बावजूद यह देश आजादी के बाद तेजी से विकास के पथ पर आगे बढ़ा, लेकिन आज देश में एक तरह की विचारधारा को जबरदस्ती थोपा जा रहा है। ये वही लोग हैं जो गोडसे को भी देशभक्त बताते हैं। ऐसी सोच रखने वाले लोग कभी इस देश का भला नहीं कर सकते। जितना जल्दी जनता जागेगी उतना जल्द ही यह देश अपनी पहचान मिटने से अपने आपको बचा पाएगा।

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