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वैलेंनटाइन डे और मैं...

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                                                                                                                                                                                                                                                                                              ...

..राख में मिलेंगी बर्बाद-ए-इश्क की निशानियां

उसके मौहल्ले में अब मैं जाता नहीं, दिल मेरा वहां अब लगता नहीं,    महफिलें सज़ाएंगे आज और कहीं, क्या हुआ अगर नजरें दिदार होंगे नहीं,  सीने में मेरे दर्द कोई कम तो नहीं, नशा भी शराब का मुझे अब होता नहीं, क्योंकि उससे अब मिल जो पाता नहीं, दर-दर भटकता रहता हूँ मैं यूं ही कहीं, बात जो थी तेरे मौहल्ले में नहीं और कहीं, चला आउँ या अपनी चिता बना लूं यहीं कहीं, बना लूं तो तुम, राख मेरी देखने आना यहीं, मेरे बर्बाद इश्क की निशांनिया मिलेंगी यहीं।। -मोहित
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 तूफानों में उड़ा जा रहा हूँ,  रोक नहीं सका मैं खुद को, हवाओं में बहता जा रहा हूँ, आंधियों का रूख बताएगा, की मैं किस ओर जा रहा हूँ, इधर-उधर की क्या कहूं, महक में उसकी बहता जा रहा हूँ, रोकूं कैसे इस दिल को मैं, जिसकी सुन ही नहीं पा रहा हूँ। -शैलेन्द्र-मोहित  
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 निकलता हूँ घर से... निकलता हूँ घर से कमाने,  पहुंच जाता हूँ, मैं मयखाने, कितना कमाउं ‘ए-जमाने’ उतना ही, जा पाउं मयखाने, दर्द मिटाने और उसे जतानेे, आना पड़ता है, मुझे मयखाने, जाता हूँ अब, जिम्मेवारी निभाने, लोग न कह दें, की हो गए दिवाने। पढ़ लो इतिहास के अफसाने, ऐसे नहीं मिलेंगे और दिवाने।
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  तूझसे नहीं मिलेंगे तो क्या, मर थोड़ी जाएंगे। हम फिर से नई उलझनों में उलझ जाएंगे।। याद तेरी आएगी फिर मयखाने में चले जाएंगे। नई महफिलों में, नए यारों में घुलमिल जाएंगे।। मुबारक हो तूझे तेरा शहर, हम नया शहर बसाएंगे। हम रांझा, हीर या देवदास से मिलकर नहीं आएंगे।। अपनी अधूरी पे्रम कहानी को यूं ही लिखते जाएंगे।  बेशक है दिल में दर्द, पर हर जिम्मेवारी निभाएंगे।। याद आएगी वो, जब सांस हम लेते जाएंगे।  तूझसे नहीं मिलेंगे तो क्या, मर थोड़ी जाएंगे।।
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मैं जन्मदिन कैसे मनाऊं... जन्मदिवस को आज पता नहीं कैसे खुशी मनाऊं, बहुतों ने भेजी शुभकामनाएं कैसे आभार जताऊं, ंखुशी हुई हैं याद करने वाले बहुत, किस-किस का नाम उताऊं, इतने सालों में क्या खोया, क्या पाया, सोचा और क्या पाउँ, सब कुछ मिल गया जब बेटी बोली ‘पापा’ जन्मदिन मैं मनाऊं, दिल में टीस है एक बहुत ही गहरी, अब ये किसे बताऊँ।
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...क्यूं तेरे ही दर पहुंच रहा हूं। पता मैं मेरे घर का पूछ रहा हूं, बार-बार तेरे ही घर पहुंच रहा हूँ, काफी दिनों से अपने ही शहर में, मैं अंजाना सा बना घूम रहा हूँ, मेरे घर का पता मुझे पता है, पता नहीं क्यूं तेरे ही दर पहुंच रहा हूँूं, रखकर पत्थर अपने दिल पर, सूरत किसी ओर की देख रहा हूँ पता नहीं क्यूं मैं भूल नहीं पा रहा हूँ, नई सूरत ढूंढ नहीं पा रहा हूँ शायद मंजूर नहीं है तेरे इस खुदा को, तूझे क्यूं भूला नहीं पा रहा हूँ, आज भी है मुझे इंतजार तेरा, बेशक मैं कुछ कर नहीं पा रहा हूँ, भूल नहीं पाउंगा, छोड़ नहीं पाउंगा, भले मैं तूजसे दूर जा रहा हूँ, मजबूरियां होंगी तेरी भी बहुत, शायद मैं समझ नहीं पा रहा हूँ, काफी दिनों से अपने ही शहर में, मैं अंजाना सा बना घूम रहा हूँ, पता मैं मेरे घर का पूछ रहा हूं, बार-बार तेरे ही घर पहुंच रहा हूँ, अब नहीं आउंगा, दूर चला जाउंगा, पागल दिल को समझा रहा हूँ।