तूफानों में उड़ा जा रहा हूँ, 





रोक नहीं सका मैं खुद को,

हवाओं में बहता जा रहा हूँ,

आंधियों का रूख बताएगा,

की मैं किस ओर जा रहा हूँ,

इधर-उधर की क्या कहूं,

महक में उसकी बहता जा रहा हूँ,

रोकूं कैसे इस दिल को मैं,

जिसकी सुन ही नहीं पा रहा हूँ।


-शैलेन्द्र-मोहित  


Comments

Popular posts from this blog

..राख में मिलेंगी बर्बाद-ए-इश्क की निशानियां

वैलेंनटाइन डे और मैं...